सुप्रीम कोर्ट: जिला जजों की परीक्षा के लिए न्यूनतम उम्र तय करना संविधान के विपरीत नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को रखा बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा है कि जिला जजों के चयन के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित करना संविधान के विपरीत नहीं है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा के लिए उम्मीदवारों की न्यूनतम उम्र 35 वर्ष होनी चाहिए।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 233(2) न्यूनतम आयु आवश्यकता की शर्त को नहीं रोकता है। यह अनुच्छेद केवल एक न्यूनतम योग्यता निर्धारित करता है कि एक वकील के पास जिला जज के रूप में चयन के लिए कम से कम सात साल वकालत का अनुभव होना चाहिए। पीठ ने कहा, संविधान न्यूनतम आयु के निर्धारण के संबंध में चुप है।

हाईकोर्ट नियम बनाने के अधिकार का प्रयोग करते हुए इस तरह की आवश्यकता को निर्धारित कर सकता हैं। यह हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में है कि वह यह सुनिश्चित करे कि पर्याप्त अनुभव वाले उम्मीदवार उच्च न्यायिक सेवाओं में प्रवेश करें। पीठ ने यह भी नोट किया कि शेट्टी आयोग ने जिला जजों के चयन के लिए न्यूनतम आयु 35 वर्ष और अधिकतम आयु 45 वर्ष की सिफारिश की थी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील एएस चंडियोक, सिद्धार्थ लूथरा, अनीता शेनॉय, धर्म शेषाद्रि नायडू और अन्य ने उच्च न्यायिक सेवा परीक्षाओं के लिए आवेदन करने के लिए 35 वर्ष की न्यूनतम आयु निर्धारित करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद-233 (2) का हवाला दिया और तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने ही 2019 में 35 वर्ष की न्यूनतम आयु की आवश्यकता को हटा दिया था, लेकिन फरवरी 2022 में इसे फिर से लाया गया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती में कोई मेरिट नहीं है। हालांकि शीर्ष अदालत ने 45 वर्ष की अधिकतम आयु पार करने वालों को एक बार छूट की अनुमति दी क्योंकि परीक्षा वर्ष 2020 और 2021 में आयोजित नहीं की जा सकी थी। साथ ही आवेदन करने की अंतिम तिथि 26 मार्च तक के लिए बढ़ा दी और परीक्षा तीन अप्रैल के लिए टाल दी।

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